Saturday, November 23, 2013

Ek Ghazal (Devnagri)

अपने सवालों का  जवाब मांगती है
ज़िन्दगी हर साँस का हिसाब मांगती है

होश में  रहना मुमकिन नहीं अब
इसलिए  साक़ी  से वो  शराब मांगती है

सेहरा से मांगती है वो बहार का वादा
और उजड़े चमन से गुलाब मांगती है

नींद तो मयस्सर नहीं हुआ इसे अब तक
मेरी बेदार ऑंखें अब एक ख्वाब मांगती हैं

मेरे पास तो चंद  टूटे सितारे  बचे  हैं 'अब्द'
लेकिन वो तो अक्सर माहताब  मानती है

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