Sunday, April 08, 2018

GHAZAL



हर   शाख़ पे फूल नहीं,  ख़ार ही ख़ार चाहिए
हाकिम-ए-शहर को नहीं गुल-ए-गुलज़ार चाहिए


जिस्म  वो जां  तो उसने खरीद लिया कब का
अब  उसे दिल  पे भी पूरा  अख्तियार चाहिए


खुले  हैं मुल्क  में वहशत के  कारखाने कितने
और  तुमको  अब भी कोई  रोज़गार चाहिए


दिल  तोड़ने  का हर एक नुख्सा है हमारे पास
लेकिन तुम्हें  तो दिल जोड़ने काऔज़ार चाहिए


नफरत की बारिशों का भी मजा लीजिए ज़रा  
क्यों तुम्हे मोहब्बत की एक ठंडी फुहार चाहिए


पहले तो दावत ए चमन दिया ख़िज़ाँ को तुमने
अब  ये कहते  हो की मौसम ए बहार चाहिए


फुर्सत और आराम  सब अमीरों के चोचले  हैं

अब्द  तुम्हें  क्यों हफ्ते  में एक इतवार चाहिए



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