Sunday, May 06, 2018

A NEW GHAZAL


झूठी  वतन परस्ती का यह कारोबार बंद करो
वहशत की तिज़ारत,नफ़रत का बाजार बंद करो


देखो झुलस रहीं हैं  कलियाँ कितनी चमन में
साथ लाये हो  जो,वो मौसम-ए -बहार बंद करो


तेरे इश्क़ से तेरी हमदर्दी से परेशां हैं बहुत लोग
अपना ये झूठा दिखवा ये अपना प्यार बंद करो


मैं जनता हूँ की नहीं है उल्फत तुमको मुझ से
खुदा के वास्ते ये बार बार का इज़हार बंद करो


तेरे फरेब का सलीका है शानदार ,सुभानअल्लाह
चलो मैं तुमसे हार  गया, अब ये तकरार बंद करो


शहर पे  पूरा कब्ज़ा है अब शब-ए -ज़ुल्मात का
अब्द नहीं आएगी वो सहर  इंतज़ार बंद करो

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