Saturday, December 10, 2016

EK GHAZAL

हसरतों का अपने तू  हिसाब रखा कर
अपने पास ज़्यादा मत ख्वाब रखा कर 


क्यों होता  है  ख़फ़ा मेरे हर सवाल पे
मेरे सवालों का बस जवाब रखा कर


न बुझेगी ये तिशनगी मय से अब तो
ऐ शाकी, मेरे पैमाने में तू तेज़ाब रखा कर 


लब से ज्यादा तेरी निगाहों को ज़रुरत है
सुराही में नहीं, आँखों में तू आब रखा कर 


 ज़रा होशियार रहा कर इस शहर के लोगों से
यूँ न दरीचे  पे कभी अपना शबाब रखा कर 


   तवील है  सफर  तारीकियों  के समंदर का ऐ अब्द
 अपने दामन  में छुपा के एक
 आफ़ताब रखा कर

  


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