ये अंधेरों का सफ़र तो गुज़र जायेगा
पर न जाने कब उजालों का शहर आयेगा
जब ख़त्म होंगे तारीकियों के सिलसिले
तब रात जायेगी और फिर सहर आयेगा
वहशत-ए -इश्क़ को न कमतर समझना
इस जुनूं में न जाने वो क्या कर जायेगा
पीछे आग का दरिया, सामने दश्त-ए -तन्हाई
ऐसे में वो शख्स जायेगा तो किधर जायेगा
छुपा रखे थे कई ख़्वाब हमने आँखों में
लगता है वो ख्वाब अब बिखर जायेगा
आज सातवाँ दिन है इस कर्फ्यू का 'अब्द'
वो ग़रीब तो अब भूखे ही मर जायेगा
अब्दुल्लाह खान 'अब्द '
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