Thursday, December 27, 2012

A New Ghazal

Autumn scenery 002

ग़ज़ल 

ख्वाबों के  सलेट पे हसरतों के निशान कितने हैं 
एक है दिल, उस   दिल के अरमान कितने हैं 

हर गली हर कुचे में आदमी ही आदमी 
ये बताओ इस शहर में   इंसान कितने हैं 

चाँद तारों तक महदूद नही  मजिल अपनी 
क्योंकि सितारों के आगे भी  जहान कितने हैं 

मंदिरों और मस्जिदों में तुझ को  तलाशाते हैं 
या खुदा, इस बस्ती के लोग  नादान  कितने हैं 

जीना दुश्वार हो गया  इस  दौर-ए -जदीद में 
लेकिन  मरने के तरीक़े  आसान कितने हैं 
 --abdullah khan 'abd'

1 comment:

Thegreenway said...

very nice ghazal