ग़ज़ल
ख्वाबों के सलेट पे हसरतों के निशान कितने हैं
एक है दिल, उस दिल के अरमान कितने हैं
हर गली हर कुचे में आदमी ही आदमी
ये बताओ इस शहर में इंसान कितने हैं
चाँद तारों तक महदूद नही मजिल अपनी
क्योंकि सितारों के आगे भी जहान कितने हैं
मंदिरों और मस्जिदों में तुझ को तलाशाते हैं
या खुदा, इस बस्ती के लोग नादान कितने हैं
जीना दुश्वार हो गया इस दौर-ए -जदीद में
लेकिन मरने के तरीक़े आसान कितने हैं
--abdullah khan 'abd'
1 comment:
very nice ghazal
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