Sunday, January 05, 2014

Chand Ash'aar Ghazlon ke


GHAZAL (1)
अपनी उल्फत को कोई भी नाम ना देना 
हाथ से छुकर इसे रिश्तों का इलज़ाम ना देना 

तेरे दर्द-ए-दिल का तोहफ़ा अभी भी मेरे पास
खुदा के वास्ते अब कोई नया इनाम ना देना 

उनकी आँखों के पिये का ख़ुमार अभी बाक़ी है 
साक़ी मुझे अब कोई भी जाम ना देना 


GHAZAL (2)

अपने दिल की किताब में तेरा नाम लिखूँगा 
सुबह-ओ-शाम लिखूँगा,  सरेआम लिखूँगा 

इस अफसाने का आगाज़ तुमने किया है  
इस कहानी का अब  मैं अन्ज़ाम लिखूँगा 






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