ग़ज़ल
मैंने चाहा उन्हें, उनको मुझसे प्यार न हुआ
मेरी वफाओं का उनको ऐतबार न हुआ
न मौजों का पता है न साहिल की खबर
बहर-इ-इश्क में जो कूदा वो कभी पार न हुआ
खिजां थी मेरी किस्मत वही मुझको मिली
मेरे गुलशन में कभी मौसम-ए - बहार न हुआ
जुर्म-ए -उल्फ़्त का इलज़ाम था हम पे
उनसे इकरार न हुआ हमसे इंकार न हुआ
जिसके लिए हम ने तो सदियाँ गुज़ार दी
उस बेवफा से दो पल भी इंतज़ार न हुआ
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