पत्थरों के इस शहर में क्या क्या नहीं देखा
लेकिन किसी भी घर में कोई इन्सां नहीं देखा
सभी पी रहे थे शौक़ से नफ़रत के ज़हर को
मुहब्बत से छलकता कोई पैमां नहीं देखा
क़त्ल करतें हैं, नाम चारागर है उनका
कहीं कभी भी ऐसा मसीहा नहीं देखा
वो उदास था महलों में भी रहकर लेकिन
सड़क पे जो सोया था उसे परेशां नहीं देखा
कभी दर्द का साथ, तो कभी खलिश था हमनवा
'अब्द' को कभी हमने तनहा नहीं देखा
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