Friday, November 02, 2012

EK GHAZAL

 एक  ग़ज़ल 
कई ख्वाब उसकी आँखों में पिघलते देखा
 मैंने अरमानों को सांसों में जलते देखा 

रुख पे थी बेबसी और मायूसी निगाहों में
पर धडकनों  में उम्मीदों को पलते देखा 

कल चुप चाप  थी  समंदर की लहरें  लेकिन
उसके साहिल को हर पल ही  मचलते देखा 

उसने देखा मुझे आज एक  अजनबी की तरह
और मैंने आज एक दोस्त को बदलते देखा 

चोट लगती थी जिनको  फूलों से भी अब्द
 उसे आज मैंने काँटों पे भी चलते देखा 



Abdullah Khan 'Abd'


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