एक ग़ज़ल
कई ख्वाब उसकी आँखों में पिघलते देखा
मैंने अरमानों को सांसों में जलते देखा
रुख पे थी बेबसी और मायूसी निगाहों में
पर धडकनों में उम्मीदों को पलते देखा
कल चुप चाप थी समंदर की लहरें लेकिन
उसके साहिल को हर पल ही मचलते देखा
उसने देखा मुझे आज एक अजनबी की तरह
और मैंने आज एक दोस्त को बदलते देखा
चोट लगती थी जिनको फूलों से भी अब्द
उसे आज मैंने काँटों पे भी चलते देखा
कई ख्वाब उसकी आँखों में पिघलते देखा
मैंने अरमानों को सांसों में जलते देखा
रुख पे थी बेबसी और मायूसी निगाहों में
पर धडकनों में उम्मीदों को पलते देखा
कल चुप चाप थी समंदर की लहरें लेकिन
उसके साहिल को हर पल ही मचलते देखा
उसने देखा मुझे आज एक अजनबी की तरह
और मैंने आज एक दोस्त को बदलते देखा
चोट लगती थी जिनको फूलों से भी अब्द
उसे आज मैंने काँटों पे भी चलते देखा
Abdullah Khan 'Abd'
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