ग़ज़ल
उन्हें नश्तर से दिल पे वार करना आता है
हमें भी अपने जख्म शुमार करना आता है
उनको न आना है तो न आएं मेरी बला से
मुझे क़यामत तक भी इंतज़ार करना आता है
बेलौस गुज़र जायेगा इश्क़ के तूफां से वो
आग का दरिया उसे पार करना आता है
बेवफाई शौक़ उनका और इश्क़ जुनूं मेरा
उन्हें ज़फ़ा तो मुझे प्यार करना आता है
भला दोस्तों का यक़ीन क्यों न करता वो
जिसे रक़ीबों पे भी ऐतबार करना आता है
चमन को उजाड़ने का वे हुनर रखतें हैं और
हमें बयाबां को गुल- ए- गुलज़ार करना आता है
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