Sunday, March 12, 2017

Ghazal

ग़ज़ल 

अपने बेताब अरमानों को उसके रुबरु किया मैने
आज कुछ  इस तरह से उस से गुफ्तगू किया मैने

लफ़्ज़ों के खंज़र से जिगर चाक किया फिर उसने
और सब्र के धागों से फिर से दिल का रफू किया मैने

तल्खियाँ सारी भूल गया मैं रात के गुज़रते गुज़रते
सहर होते ही उस से मिलने का फिर ज़ुस्तज़ू  किया मैने

उसने कहा की जाओ और डूब मरो दरिया में
उसकी जो ख्वाहिश थी वही हूबहू किया मैने

मयखाने के आदाब निभाए मैने  इस तरह से अब्द
के मयकदे  जब भी गया तो पहले वज़ू किया मैने  




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