ऐय्यारी को क्यों मैं शराफत समझता रहा
तिज़ारत था वो मैं मुहब्बत समझता रहा
तग़ाफ़ुल को उनके न पढ़ पाया अबतक मैं
उनकी बेरुख़ी को उनकी नज़ाकत समझता रहा
उनकी बेवफाई के किस्से मशहूर तो थे पर
उन किस्सों को रक़ीबों की शरारत समझाता रहा
इश्क़ का इज़हार भी ऐसा किया महबूब ने
प्यार के इक़रार को एक अदावत समझता रहा
झूठ का अंदाज़ भी इतना हसीं था जनाब का
उनके हर फ़रेब को मैं तो सदाकत समझता रहा
उनके लिए दिल का लगाना एक खेल था और
मैं अपने इश्क़ को बस एक इबादत समझाता रहा
No comments:
Post a Comment