मेरी आँखों में ख्वाबें तमाम बाक़ी है
लबों पे अब भी तेरा नाम बाक़ी है
''अय्याम-ए-जुदाई'' का सितम देख लिया मैंने
लेकिन अभी तो हिज़्र की शाम बाक़ी है
दिल पे चलाओ खूब नश्तर हमदम
मेरी वफाओं का अभी सारा इनाम बाक़ी है
पीया मैने ना जाने ज़हर के प्याले कितने
मेरे सामने अब ये आखरी जाम बाक़ी है
वो आएँ तो पूछूँ ज़रा, ख़ता क्या थी मेरी
मरने के पहले इतना सा काम बाक़ी है
ना कर जल्दी, ठहर जा ऐ दरकश तू ज़रा
हकीम-ए- मक़तल का अभी सलाम बाक़ी है