हसरतों का अपने तू हिसाब रखा कर
अपने पास ज़्यादा मत ख्वाब रखा कर
क्यों होता है ख़फ़ा मेरे हर सवाल पे
मेरे सवालों का बस जवाब रखा कर
न बुझेगी ये तिशनगी मय से अब तो
ऐ शाकी, मेरे पैमाने में तू तेज़ाब रखा कर
लब से ज्यादा तेरी निगाहों को ज़रुरत है
सुराही में नहीं, आँखों में तू आब रखा कर
ज़रा होशियार रहा कर इस शहर के लोगों से
यूँ न दरीचे पे कभी अपना शबाब रखा कर
तवील है सफर तारीकियों के समंदर का ऐ अब्द
अपने दामन में छुपा के एक आफ़ताब रखा कर