Sunday, April 14, 2013

EK GHAZAL



पत्थरों के इस शहर में क्या क्या नहीं देखा 
लेकिन किसी भी घर में कोई इन्सां नहीं देखा 

सभी पी रहे थे शौक़ से नफ़रत के ज़हर को 
मुहब्बत से छलकता कोई पैमां नहीं देखा 

क़त्ल करतें हैं, नाम चारागर है उनका 
कहीं कभी भी ऐसा मसीहा नहीं देखा 

वो उदास था महलों में भी रहकर लेकिन 
सड़क पे जो सोया था उसे परेशां नहीं देखा 

कभी दर्द का साथ, तो कभी खलिश था हमनवा 
'अब्द' को कभी  हमने तनहा नहीं देखा